आत्मा का स्वामी ( Master of Soul ) , मन का विजेता ( Conqueror of Mind ) , इंद्रियों का वशकर्ता ( Controller of Senses ) , गोपति ( Owner of Cows ) , गोपालक ( Domesticator of Cows ) , विद्या का पुजारी ( Worshipper of Knowledge ) , ज्ञानप्रदाता ( Bestower of Knowledge ) , ज्ञानखोजी ( Seeker of Knowledge ) , चक्षुखोलक ( Eye - Opener ) , स्वर्गप्रेषक ( Supplier to Heaven ) , वाणीमर्मज्ञ ( Expert in speech ) इत्यादि।
धर्म की लघु शाखा को "पंथ" कहते हैं । पंथ के कई पर्यायवाची ( समानार्थी ) शब्द हैं , जैसे -- मत , रीति , सम्प्रदाय , परम्परा , मार्ग , विचार इत्यादि । पंथ को उर्दू में जमात , दीन , मजहब कहते हैं । पंथ को पंजाबी में जत्था कहते हैं और अंग्रेजी में Cult , Creed कहते हैं । भारत में अनेक पंथ हैं , जैसे --- वैष्णव पंथ , शैव पंथ , शाक्त पंथ , स्मार्त पंथ , नानक पंथ ( या सिक्ख पंथ ) , कबीर पंथ , दादू पंथ , चर्वाक पंथ इत्यादि। शैव धर्म या शैव पंथ या शैव मत ( Shaivism ) का एक छोटा हिस्सा है "दशनाम पंथ" । इसे दशनाम या दशनामी इसलिए कहते हैं क्योंकि इसकी दस शाखाएं हैं --- वन , अरण्य , तीर्थ, आश्रम, गिरि, पर्वत, सागर , सरस्वती , भारती, पुरी । असल में ये शैव संन्यासियों के दस उपनाम हैं जोकि आदिकाल से चले आ रहे हैं।
पहले आर्य सभ्यता को भारत की प्राचीनतम सभ्यता माना जाता था लेकिन सन् 1922 ई. में मोहनजोदड़ो , हड़प्पा, लोथल , कालीबंगा इत्यादि स्थानों की खुदाई से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि सिंधु घाटी सभ्यता भारत की प्राचीनतम सभ्यता है जिसमें शैव धर्म के साक्ष्य एवं अवशेष मिले हैं । खुदाई के दौरान कई शहर ज़मीन में मिले हैं । खुदाई में एक आकृति मिली है जिसे शिव माना गया है । शिव को भारत का आदिदेव माना जाता है । यह सर्वविदित है कि शैव धर्म के इष्टदेव भगवान शिव हैं । शैवधर्म से ही संन्यासी संप्रदाय या परम्परा का आविर्भाव हुआ है । भगवान शिव को पहला संन्यासी माना जाता है । इसलिए शैवधर्म दशनाम पंथ का पिता है।
प्राचीनकाल में केवल ब्राह्मणों को ही संन्यासी बनने का अधिकार था । बहुत से ब्राह्मण वैष्णव धर्म या सम्प्रदाय या पंथ को छोड़कर शैव धर्म में शामिल होकर संन्यासी बन गये । बस वहीं से ही दशनाम संन्यासियों ( अर्थात दशनाम गोस्वामियों ) की उत्पत्ति हुई । दशनाम गोस्वामियों में कुछ लक्षण शैवधर्म के हैं और कुछ लक्षण वैष्णव धर्म के हैं । अतः यह कहना न्यायोचित होगा कि दशनाम पंथ का पिता शैवधर्म है जबकि इसकी माता वैष्णव धर्म है । दशनाम पंथ में वैष्णव मत से ज्यादा गुण शैवमत के हैं।
दशनाम गोस्वामियों के ऋषि गोत्र वही हैं जो ब्राह्मणों के हैं लेकिन दोनों के कुलगोत्रों में भारी अंतर है । वर्तमान में ब्राह्मण और गोस्वामी दो अलग अलग जातियां हैं लेकिन इन दोनों का वर्ण एक ही है और उसका नाम है ब्राह्मण वर्ण। इस अर्थ में गोस्वामियों को शैव ब्राह्मण कहा जाता है।
ब्राह्मणों और गोस्वामियों में कई फर्क हैं , जैसे - ब्राह्मण लोग कर्मकांडमार्गी हैं जबकि दशनाम गोस्वामी ज्ञानमार्गी हैं । गोस्वामियों का दर्शन अद्वैतवाद कहलाता है जिसके जनक आदिशंकराचार्य माने जाते हैं और जिसके जिसके विरोध में अनेक वैष्णव दर्शन उभरे , जैसे -- द्वैतवाद , विशिष्टाद्वैतवाद इत्यादि । गोस्वामी लोग अपना इष्टदेव भगवान शिव को मानते हैं लेकिन ब्राह्मण लोग अपना इष्टदेव भगवान विष्णु को मानते हैं । ब्राह्मण लोग प्रवृत्तिवादी हैं अर्थात् वे परिवार , धन , संग्रह , भोग , समाज में लिप्त रहते हैं जबकि गोस्वामी लोग निवृत्तिवादी हैं अर्थात् वे त्याग , तप , वैराग्य , मोक्ष में विश्वास करते हैं । मठों , शिवालयों और हनुमान मंदिरों पर पुजारी या महंत या अधिपति बनकर धर्म का प्रचार - प्रसार करना गोस्वामी लोगों का कार्य रहा है जबकि ब्राह्मण लोगों का कार्य था और है घर - घर जाकर धर्म का प्रचार - प्रसार करना । ब्राह्मण लोग जनता को भागवत कथा सुनाते हैं जबकि गोस्वामी लोग जनता को शिव कथा सुनाते हैं।
🕉️ नमः शिवाय।
🕉️ नमो नारायण" ( शुद्ध संस्कृत में -- "🕉️ नमः नारायणाय" )।
"हर हर महादेव"।
"वंदे मातरम्" । बंगाल के संन्यासी विद्रोह ( 1769 - 1770 ) से उभरा देशभक्ति से उभरा हुआ नारा।
दशनाम पंथ का मूल दर्शन अद्वैतवाद है अर्थात ईश्वर एक है , दो नहीं । दशनाम पंथ में अद्वैतवाद के ग्यारह ( एकादश ) आचार्य हुए हैं जिनके नाम हैं :-- नारायण , ब्रह्मा , रुद्र , वशिष्ठ , शक्ति , पराशर , वेदव्यास , शुकदेव , गौड़पाद , गोविंदपाद , शंकरपाद ( अर्थात आदि शंकराचार्य ) । वैसे तो आदिशंकराचार्य से पूर्व अनेक अद्वैतवादी हुए हैं लेकिन आदिशंकराचार्य को ही अद्वैतवाद का असली प्रवर्तक माना जाता है।
संस्कृत में एक जगह पर कहा गया है --- "तीर्थाश्रम वनारण्य गिरि पर्वत सागरा: । सरस्वती भारती च पुरीनामानि वै दंश।।" अर्थात दस उपनाम इस प्रकार हैं ---- ( 1 ) तीर्थ , ( 2 ) आश्रम , ( 3 ) वन , ( 4 ) अरण्य , ( 5 ) गिरि , ( 6 ) पर्वत , ( 7 ) सागर , ( 8 ) सरस्वती , ( 9 ) भारती , ( 10 ) पुरी । जिन संन्यासियों के ये उपनाम हैं उनके असली नाम थे --- ( 1 ) वशिष्ठ वन , ( 2 ) शम्भू अरण्य , ( 3 ) गौतम तीर्थ , ( 4 ) अनंत आश्रम , ( 5 ) नारायण गिरि , ( 6 ) राम सागर , ( 7 ) पूर्ण पर्वत , ( 8 ) परमानंद सरस्वती , ( 9 ) हस्तामलक भारती , ( 10 ) नित्यानंद पुरी।
वन और अरण्य पूर्व में गोवर्धन महामठ से सम्बद्ध और जिनका ऋषि गोत्र कश्यप है । तीर्थ और आश्रम पश्चिम में शारदा महामठ ( द्वारका ) से सम्बद्ध और जिनका ऋषि गोत्र अधिगत ( अविगत ) है। गिरि , सागर , पर्वत उत्तर में ज्योतिर्मठ से सम्बद्ध और जिनका ऋषि गोत्र भृगु है । सरस्वती , भारती , पुरी दक्षिण में श्रृंगेरी महामठ से सम्बद्ध और जिनका ऋषि गोत्र भूर्भुवः है।
पूर्व में गोवर्धन महामठ ( पुरी , उड़ीसा ) , पश्चिम में शारदा महामठ ( द्वारका , गुजरात ) , उत्तर में ज्योतिर्मठ (उत्तराखंड ) , दक्षिण में श्रृंगेरी महामठ ( मैसूर , कर्नाटक )।
कश्यप ( गोवर्धन मठ ), दधीचि ( शारदा मठ ), भृगु ( ज्योतिर्मठ ), श्रृंगी ( श्रृंगेरी मठ)।
महानिर्वाणी , निरंजनी , जूना ( भैरव ) , अटल , आनंद , अग्नि , आवाहन । इनमें केवल दशनाम शैव संन्यासी ही भर्ती हो सकते हैं।
[ 1 ] अपना - तेरा करना नहीं ( अर्थात अपने - पराये का भेद नहीं ) , [ 2 ] गांजा - तम्बाकू पीना नहीं अर्थात नशा नहीं करना , [ 3 ] लोहा - लकड़ी उठाना नहीं अर्थात आपस में झगड़ा नहीं , [ 4 ] जिसके पास रहना उसकी सेवा करना , [ 5 ] चीज पर सामूहिक अधिकार , व्यक्तिगत अधिकार नहीं , [ 6 ] अपना अखाड़ा छोड़कर दूसरे के अखाड़े में जाना नहीं।
[ 1 ] प्रज्ञानं ब्रह्म ( अर्थात ब्रह्म आनंद स्वरूप है ) । ऋग्वेद का महावाक्य और ऐतरेय उपनिषद् ( 5 / 3 ) से उद्धृत ।गोवर्धन महामठ से सम्बद्ध । [ 2 ] तत्त्वमसि ( अर्थात जीव ही ब्रह्म है ) । सामवेद का महावाक्य और छांदोग्य उपनिषद ( 6 / 7 / 8 ) से उद्धृत । द्वारका महामठ से सम्बद्ध। , [ 3 ] अयमात्मा ब्रह्म ( अर्थात यह आत्मा ब्रह्म है ) । अथर्ववेद का महावाक्य और माण्डूक्य उपनिषद से उद्धृत । ज्योतिर्महामठ से सम्बद्ध , [ 4 ] अहम् ब्रह्मास्मि ( अर्थात मैं ब्रह्म हूं ) । यजुर्वेद का महावाक्य और बृहदारण्यक उपनिषद् ( 1 / 4 / 10 ) से उद्धृत । श्रृंगेरी महामठ से सम्बद्ध।
[ 1 ] भोगवार ( गोवर्धन महामठ से सम्बद्ध) , [ 2 ] कीटवार ( द्वारका महामठ से सम्बद्ध ) , [ 3 ] आनंदवार ( ज्योतिर्महामठ से सम्बद्ध ) , [ 4 ] भूरिवार ( श्रृंगेरी महामठ से सम्बद्ध )।
सूर्य प्रकाश , चन्द्र प्रकाश , दत्त प्रकाश , भैरव प्रकाश।
गोपाल , अजयमेध , दह ( दत्त ) , सूर्यमुखी।
कुटीचक , बहुदक , हंस , परमहँस।
जागृत , स्वप्न , सुषोपति , तुरिया।
दशनाम गोस्वामी पंथ या समाज संन्यास परम्परा से निकला है जोकि अनादि काल से चली आ रही है। आदिशंकराचार्य संन्यास परम्परा के अंतर्गत एक महान संत थे। संन्यास परम्परा तो आदिशंकराचार्य से पहले भी विद्यमान थी और आदिशंकराचार्य के बाद भी चलती रही । आदि शंकराचार्य तो दशनाम संन्यासियों के संगठनकर्ता थे , जनक नहीं । उन्होंने शैव संन्यासियों को संगठित बनाया था , सशक्त बनाया था । आदि शंकराचार्य ने उनके एक हाथ में शास्त्र और दूसरे हाथ में शस्त्र थमा दिए थे।
शिखा और सूत्र ( जनेऊ ) को त्यागकर ही कोई व्यक्ति संन्यासी बन सकता है । अतः शिखा और सूत्र संन्यासी के लिए कतई अनिवार्य नहीं है । कालान्तर में शैव संन्यासियों की एक नई शाखा प्रकट हुई जिसे गृहस्थ शाखा कहते हैं । गृहस्थ शाखा के लोग अपने को ब्राह्मण मानने लगे और शिखा और सूत्र धारण करने लगे। अतः शिखा - सूत्र को गृहस्थ गोस्वामी धारण कर सकता है , विरक्त गोस्वामी या संन्यास को इनको धारण करने की आवश्यकता नहीं है।
दशनाम गोस्वामियों में समाधि लेने की प्रथा है । समाधि दो प्रकार की होती थी या है -- भूसमाधि और जलसमाधि । समाधि दो प्रकार से ली जाती थी -- मृत समाधि और जीवित समाधि। प्राचीनकाल में विरक्तों और गृहस्थों - दोनों के लिए समाधि ही अंतिम क्रिया थी , परंतु कालांतर में विरक्त गोस्वामी समाधि लेते रहे और गृहस्थ गोस्वामियों ने दाहकर्म को अपना लिया। राजस्थान , गुजरात , महाराष्ट्र में समाधि प्रथा चल रही है किंतु शहरों में गृहस्थ गोस्वामी लोग दाहकर्म कर रहे हैं।
गोस्वामी लोग ज्ञानमार्गी हैं , कर्मकांडी नहीं । प्राचीनकाल से ही गोस्वामी लोग ज्ञान , तप , वैराग्य और आध्यात्म को वरीयता देते रहे हैं और कर्मकाण्ड के विरोधी रहे हैं । गोस्वामियों ने यज्ञों में होनीवाली हिंसा का सदैव विरोध किया। ब्राह्मणों द्वारा कलावती की कथा को गोस्वामियों ने कभी स्वीकार नहीं किया जिसमें बताया जाता है कि ब्राह्मण को दान नहीं देने के कारण अमुक यजमानों का सर्वनाश हो गया। गोस्वामियों ने वेदों - पुराणों को तो माना लेकिन ब्राह्मणों ने जो उसमें अपने स्वार्थवश खाने - कमाने की जो सामग्री उनमें जोड़ दी तो गोस्वामियों ने उसे कभी नहीं माना।
विरक्त और गृहस्थ। विरक्तों को धार्मिक सैनिक ( Religious military men ) और गृहस्थों को धार्मिक नागरिक ( Religious civil men ) कहा जाता है । आदि शंकराचार्य के आवाहन पर धर्म को बचाने के लिए शैव संन्यासियों ने अपने को धार्मिक सैनिक बना लिए थे । दशनाम शैव संन्यासी भारत के सबसे पहले धार्मिक सैनिक थे।
शैव मठों , शिवालयों और हनुमान मंदिरों पर महंत एवं पुजारी बनना दशनाम गोस्वामियों का व्यवसाय रहा है । अब तो नौकरी , मजदूरी और व्यापार में भी लगे हुए हैं।
दशनाम गोस्वामियों की सामाजिक स्थिति शुरू से ही उच्च रही है । भारतीय समाज से गोस्वामियों को सदैव से मान - सम्मान मिलता रहा है । लोग इनके पैर छूते रहे हैं । सदैव से प्राचीन परम्परा रही है कि भले ही हजारों ब्राह्मणों को भोज कराया जाये लेकिन उसका फल नहीं मिल सकता जब तक उनमें कम से एक संन्यासी ( अर्थात गोस्वामी ) न हो । शिवलिंग और हनुमान प्रतिमा पर चढ़े हुए चढ़ावे को लेने का एकमात्र अधिकार गोस्वामी को है । जो असल ब्राह्मण हैं वे इस सत्य को अंदरूनी रूप से जानते हैं । वे भूलकर भी उस चढ़ावे को ग्रहण नहीं करते हैं । दशनाम गोस्वामी लोग सामाजिक दृष्टि से तो सम्पन्न हैं लेकिन आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं । अतः कई प्रदेशों में इनको ओ. बी. सी. ( Other Backward Class ) में रखा है।
किसी पर प्रामाणिक आंकड़े तो हैं नहीं लेकिन अंदाजे के आधार पर भारत में गोस्वामियों की जनसंख्या कोई तीन करोड़ बताता है तो कोई सात करोड़ । परंतु इतना निश्चित है कि भारत में दशनाम गोस्वामियों की संख्या हज़ारों या लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों में है । दिल्ली की वर्तमान जनसंख्या लगभग पौने दो करोड़ है जिसमें से लाखों लोग गोस्वामी हैं । नेपाल की वर्तमान जनसंख्या तीन करोड़ है जिसमें से तीन लाख गोस्वामी हैं अर्थात कुल जनसंख्या का 1%।
उर्ध्वाधर दिशा में अर्थात नीचे से ऊपर की ओर तीन परतें --- महंत ~ मंडलेश्वर ~ शंकराचार्य। धार्मिक क्षेत्र का स्वामी होता है महंत जैसे आजकल की शासन व्यवस्था में जिलाधीश ( डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ) । महंत से बड़े धार्मिक पदाधिकारी को मंडलेश्वर कहते हैं जोकि कई धार्मिक क्षेत्रों अर्थात मंडलों के ऊपर होता है । वह किसी शैव संन्यासी अखाड़े का सबसे बड़ा पदाधिकारी हो सकता है । सबसे ऊंचा धार्मिक पदाधिकारी होता है शंकराचार्य । आदि शंकराचार्य ने पूरे भारत को चार भागों में बांटकर चार दिशाओं में चार शंकराचार्य बनाये थे । हर हिस्से को एक प्रांत माना जाता है । प्रांत के सबसे बड़े धार्मिक पदाधिकारी को शंकराचार्य कहा जाता है। भारत की चार दिशाओं में स्थित चार महामठों ( गोवर्धन , द्वारका , जोशी और श्रृंगेरी ) के सबसे बड़े आचार्यों को अपने नाम के साथ 'शंकराचार्य' लिखने का अधिकार है लेकिन अब तो अनगिनत लोग अपने नामों के साथ शंकराचार्य लिखे मिल जायेंगे जिनकी आदि शंकराचार्य की परम्परा में आस्था नहीं है।
धार्मिक क्षेत्र में आदि शंकराचार्य , स्वामी रामतीर्थ ( वेदांत के अंतरराष्ट्रीय प्रचारक ) , निश्चल पुरी गोसावी ( शिवाजी महाराज का द्वितीय राज्यरोहण करने वाले ) , स्वामी अवधेशानंद गिरि ( जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर ) । राजनीतिक क्षेत्र में राजा हिम्मत बहादुर गिरि , भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति स्व. डाॅ. वी. वी. गिरि , नागपुर के रियासतदार महेश पुरी गोस्वामी , स्व. राजा धनराज गिरि ( हैदराबाद ) , स्व. राधा कृष्ण गोस्वामी ( उत्तर प्रदेश के गृह - शिक्षा - सिंचाई मंत्री ) , स्व. श्री आनंद देव गिरि ( साॅलिसीटर जनरल ऑफ इंडिया ) , स्व. श्री अरविन्द गिरि ( उत्तर प्रदेश में पांच बार रहे विधायक ) और नेपाल के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. डाॅ. तुलसी गिरि । साहित्य के क्षेत्र में किशोरी लाल गोस्वामी ( हिंदी साहित्य की पहली कहानी 'इंदुमती' के लेखक ) , कवि एवं अन्ययोक्तिकार दीनदयाल गिरि , तमिल महाकवि सुब्रमण्यम भारती , मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के निवासी पं० गिरि मोहन गुरू नगरश्री । पत्रकारिता के क्षेत्र में यवतमाल ( महाराष्ट्र ) स्व. पृथ्वी गिरि हरि गिरि गोसावी , प्रयागराज ( इलाहाबाद ) निवासी स्व. महादेव गिरि 'शम्भू' , बी. पी. गोस्वामी ( चेन्नई में तीन अखबारों -- दक्षिण प्रकाश , सिटी टाइम्स , मक्कल प्रतिनिधि ---- के मालिक ) । देशसेवा के क्षेत्र में स्वतंत्रता सेनानी दल बहादुर गिरि , इंदौर के कर्नल भीमगिरि , राय बहादुर गोपाल अनंत गिरि ( महाराष्ट्र / कर्नाटक ) , स्वतंत्रता सेनानी इंदिरा रमण शास्त्री ( बिहार ) , शहीद छट्ठू गिरि - कामता गिरि - फागू गिरि ( दाउदपुर , बिहार ) , शहीद इंद्र गिरि ( इटारसी / होशंगाबाद ) , उदयपुर / चित्तौड़गढ़ निवासी आर्मी एयर डिफेंस के डायरेक्टर जनरल काॅर्प्स। मूर्तिकला के क्षेत्र में महावीर भारती ( जयपुर ) । पर्वतारोहण के क्षेत्र में श्रीमती सीमा गोस्वामी ( कैथल , हरियाणा ) , फिल्म क्षेत्र में अभिनेता - निर्माता - निर्देशक मनोज कुमार।
दशनाम गोस्वामी लोग राष्ट्रवाद , देश की स्वतंत्रता , अखंडता और सम्प्रभुता में विश्वास करते हैं । दशनाम गोस्वामियों ने कभी भी इन मुद्दों के खिलाफ काम नहीं किया है । दशनाम गोस्वामियों ने देश को सदैव जोड़ने की बात की है , देश को तोड़ने की बात कभी भी नहीं की है । दशनाम गोस्वामियों ने सदैव राष्ट्रवादियों का समर्थन किया है और टुकड़े - टुकड़े गैंग का सदैव विरोध किया है। दशनाम गोस्वामियों का मत है कि धर्म से पहले राष्ट्र है । बिना राष्ट्र के ना धर्म बचेगा और ना ही कास्ट बचेगी । इसी सोच के साथ दशनाम गोस्वामी लोग चुनाव में मतदान करते हैं।